बाइबिल ईसाइयों का पवित्रतम धर्म ग्रंथ है।
ऐसा धर्म ग्रंथ जो ईसाई धर्म की आधार शिला है।
पे्रम और परमेश्वर से सराबोर एक अमूल्य पुस्तक।
इसकी रचना 1400 ई.पू. से 900ई. तक हुई ऐसी मान्यता है।
बाइबिल में कुल मिलाकर 72 ग्रंथों का संकलन है। पूर्व विधान में 45 तथा नव विधान में 27 ग्रंथ हैं।
बाइबिल दो भागों में विभक्त है। पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) और नव विधान (न्यू टेस्टामेंट)
बाइबिल का पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टामेंट) ही यहूदियों का भी धर्म ग्रंथ है।
माना जाता है कि बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा (इंस्पायर्ड) से रचित गं्रथ है। किंतु उसे अपोरुषेय नहीं कहा जाता है।
बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है।
बाइबिल बड़ी ही सहज है इससे गूढ़ दार्शनिक सत्यों का संकलन नहीं है।
बाइबिल यह बताती है कि ईश्वर ने मानव जाति की मुक्ति का क्या प्रबंध किया है।
इंसान को प्रेम, उदारता और आत्म व्यवहार का पाठ पढ़ाती है बाइबिल।
बाइबिल में लौकिक ज्ञान एवं विज्ञान संबंधी जानकारी भी मिलती है।
बाइबिल के पूर्व विधान में यहूदी धर्म और यहूदी लोगों की गाथाएं, पौराणिक कहानियां आदि का वर्णन है।
बाइबिल के पूर्व विधान (ओल्ड टेस्टोमेंट) की भाषा इब्रानी है।
बाइबिल के नव विधान को ईसा ने लिखा। इनमें ईसा की जीवन, उपदेश और शिष्यों के कार्य लिखे हैं।
नव विधान की मूल भाषा अरामी और प्राचीन ग्रीक है।
नव विधान में चार शुभ संदेश हैं जो ईसा की जीवनी का उनके चार शिष्यों द्वारा वर्णन है।
ईसा के चार प्रमुख शिष्य: मत्ती, लूका, युहन्ना और आकुसथे।
हजरत मूसा बाइबिल के सर्वाधिक प्राचीन लेखक हैं जिन्होंने 1100 ई.पू. में पूर्व विधान का कुछ अंश लिखा था।
नव विधान की रचना 50 वर्ष की अवधि में हुई यानि सन 50 ई से. 100 ई. के बीच।
बाइबिल में लोक कथाएं, काव्य और भजन, उपदेश, नीति कथाएं आदि अनेक प्रकार के साहित्यिक रूप पाए जाते हैं।
पवित्र बाइबिल
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