बुधवार, 18 अगस्त 2010

अन्त्येष्टि

अन्त्येष्टि

अन्त्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है।अंतिम संस्कार के बाद और कोई संस्कार नही हें और यह संस्कार जीवन  भर श्राद्ध बार्खी cwrkh के रूप में चलता रहता हें ,अतः अंतिम संस्कार अति आवश्यक संस्कार खसकते हेँ |  आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत् क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है। जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है। मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।
मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसने जन्म मिला है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होगी। हिंदू धर्म में मृत्यु के संबंध में कई महत्वपूर्ण नियम बनाए गए हैं। जैसे सबसे महत्वपूर्ण नियम यह है कि किसी की भी मृत्यु के बाद शव को मुखाग्नि पुत्र ही देता है। यदि मृत व्यक्ति का पुत्र है तो मुखाग्नि उसे ही देना है, ऐसा विधान है।
मृतक चाहे स्त्री हो या पुरुष अंतिम क्रिया पुत्र की संपन्न करता है। इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पुत नामक नर्क से बचाता है अर्थात् के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसीलिए मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है।
पुत्र ही माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है।

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