गुरुवार, 29 जुलाई 2010

सनातन धर्म के कुछ नियम लुप्त हो चुके हें जिन पर चर्चा होनी चाहिए|

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Gita Sharma

Gita Sharma सनातन धर्म के कुछ नियम लुप्त हो चुके हें जिन पर चर्चा होनी चाहिए ,,,,,,,,किसी भी युग में संसारी जीव में आस्था उसका पूजन और भजन मोह माया का बंधन रहा है |जिस से यह जीव मुक्त नही होता |कलयुग में राम नाम से बड़ा कोई जप भावों की शुद्धता से बड़ा कोई तप ईश्वर में सदेव ध्यान से बड़ा कोई व्रत नही ,जिस से यह जीव मुक्ति का अधिकारी हो जाता हे |

8 घंटे पहले · · Vij Singh naaaaaaaaa why r u do this ????????/5 घंटे पहले ·                              
  • Ramesh Mishra, Suresh Sharma, Rekha Sharma और 17 अन्य इसे पसन्द करते हैं .
    • Gita Sharma http://www.facebook.com/topic.php?topic=135&uid=133540549991116
      8 घंटे पहले · ·
    • Rasesh Rastogi you are right.. geetaji...sansaar mein koi bhi manushya mukta nahin ho sakta, jab tak uska man bhagwaan ki astha mein lagaa na rahe, tab tak uska man shudh ho jaayen..
      8 घंटे पहले · ·
    • Gita Sharma धन्यवाद रस्तोगी जी
      8 घंटे पहले · ·
    • Surat Rana यह सब मन की शान्ति के उपाय है खाली समय का सद उपयोग करने के लिये
      8 घंटे पहले · ·
    • Dilbagh Jakhar sahi hai
      8 घंटे पहले · ·
    • Pradeep Sharma surat ji tpniyan karna chod do.isi main balai hai
      8 घंटे पहले · ·
    • Gita Sharma ‎@Surat Rana @Dilbagh Jakhar जी मनकी शांति ही तो चाहिये जिस के लिए सनातन धर्म के यह नियम प्राय लुप्त नही होगये हैं ?कठिन से कठिन मार्गों को अपना कर कोण सा भला हो रहा हे ?
      8 घंटे पहले · · व्यक्तिRasesh Rastogi को यह पसंद है। ·
    • Gita Sharma ‎@Pradeep Sharma जी सुरत जी तिपनी करें गे तभी तो चर्चा आगे बड़े गी कृपया इन्हें अभी तो ना रोकें आप का धन्यवाद
      8 घंटे पहले · ·
    • Bharat Kanani achha hai
      7 घंटे पहले · ·
    • Dev Joshi i like
      7 घंटे पहले · ·
    • Satish Rawat jai shree ram..........
      7 घंटे पहले · ·
    • Jai Shukla MAI SANATAN DHARM K BARE M JANNA CHAHTA HU
      7 घंटे पहले · · व्यक्तिआपको यह पसंद है. ·
    • Varun Sharma haha
      6 घंटे पहले · ·
    • Vij Singh naaaaaaaaa why r u do this ????????/
      5 घंटे पहले · ·



 Sanjiv Vaidya( १)    हम   एक  भ्रम  में  जी  रहे  हैं ... और  लोगो  को  सत्य  चाहिए  भी  नह   उन्हें  तो  बस  सांत्वना  चाहिए  है ...सत्य  को  तो  हम  सूली  पे  लटका  देते  हैं ...साधो  संतो  ने  ये  जान  लिया ...और  कह  दिया  कलि  काल  हें  घोर  कलयुग  हें ... जैसे  पहले  कभी  एक ...हहा  समय  रहा  हो ...लेकिन  भ्रम  पैदा  किया  की  पहले  राम  राज्य  था  ... दूसरा  भ्रम  की  आगे  सतयुग  आएगा ... पर  ना  कभी  राम  राज्य  रहा  ना  कभी  सतयुग  आएगा ... तथाकथित  साधू  संत  अपनी  दुकान  चलने  क  लिए  ऐसा  बोलते  रहे ..भला  क्या  ये  भक्ति  हें  की  पत्थर  पर  फूल  माला  चदा  दी  और  पूजने  लगे ?    
   (2} खुद  का  बनाया  भगवन ..खुद  ही  सर  झुका  दिया  उसके  सामने ... इसका  नाम  भक्ति  हें ??                               (३)इस  से  सरल  और  क्या  हो  सकता  हें ??                                                                                                  
 (४)     कह  दिया  जपो  राम  नाम .. मुक्ति  मिलेगी ..लोग  खुश  बड़ा  आसान  काम  हो  गया ... जब  से  लोगो  के  चल  रहे  हैं  होंठ ..ह्रदय  को  खबर  ही  नहीं  है .....कोई  कही  नहीं  पहुंचा ...
इतनी  आसान  नह इ  है  भक्ति  इतना  आसान  नहीं  है  प्रेम  परमात्मा  से ...और  इन  झूठे  आयोजनों  से  तो  उपलब्ध  नहीं  होगा ..
आग  से  बिना  गुज़रे  नहीं  होगा  या ...तभी  तपकर  सोना  बनेगा ..और  प्रेम  से  बड़ी  आग  नहीं  है ...ये  आग  ही  है  जो  आत्मा  को  निखरेगी ..इसके  लिए  प्रेम  में  गिरना  पर्याप्त  नहीं  है ....प्रेम  में  होना  भी  पर्याप्त  नहीं  है  बल्कि  स्वयं  प्रेम  होना  होगा ..और  इसको  पाना  है  तो  मस्तिष्क  सइ  सारी  चेतना  ह्रदय  की  तरफ  प्रवाहित  होनी  चाहिए ...ये  सबसे  बड़ी  क्रांति  है ..हमे  मस्तिष्क  से  नहीं  ह्रदय  से  जीना  होगा .
4 घंटे पहले · ·
  • Bimal Surana जिव  परमात्मा  का  अंस  मने  टी  प्रकारी  का  क्या  महत  है .हम  अपनी  आत्मा  को  इस्वर  यानि  मूक  आत्मा  केसे  बनाये .इस्वर  से  मिलन  हो  कर  दुबारा  जनम  ना  लेना  परे .कर्मो  का  बंधन  ख़तम  हो  जाये 
    3 घंटे पहले · ·
  • Ram Rawat बिलकुल  सही  कहा  रे  गीता  तुमने ..
    2 घंटे पहले · ·
  • भगवान ने हमें इस धरती पर लाया कुछ कर्तव्यों का पालन, क्यों भाग जाओ. उसकी रचना, प्रेम, आनंद जी, खुशी और उसके लिए प्रतीक्षा करने के लिए वापस बुला बजाय अपने कार्य fullfilling भागने की कोशिश कर के बिना. मेरे विचार में मुक्ति पलायनवादी मानसिकता है.

रविवार, 25 जुलाई 2010

bhart के गुरु और un गुरुओं ki पूजा

                                              गुरु पूजा

गुरु की महिमा कभी कुमाता न होने वाली माता, बालक की प्रथम गुरु है। गणेश जी ने अपने माता-पिता को जब गोविंद से महत्तर महत्व दिया,उनकी परिक्रमा की, सर्वप्रथम आए तब से प्रत्येक कार्य के श्रीगणेश के लिए हम सिद्धि विनायक का ही सर्वप्रथम पूजन करते हैं। यह माता-पिता के गुरुत्व की सर्व स्वीकृति है। हम गुरु के इसलिए आभारी हैं क्योंकि वह निर्माता हैं।हमारा निर्माता स्वयम भगवान हे | युगों युगान्तरों  से गुरुजन लोकमंगल के लिए योग्य शिष्यों की तलाश करते रहे हैं। राम लक्ष्मण को दशरथ से मांगने वाले कौशिक की तरह, चाणक्य ने प्रजाप्रिय शासन परिवर्तन के लिए चंद्रगुप्त की खोज की और उनकी कुशलता को निपुणता प्रदान की। चंद्रगुप्त को सम्राट बनाकर वह साधारण कुटिया में रहे।परन्तु आज के गुरुओं को खुद शिष्य खोजते हें और यह गुरु लोग कुटिया में ना रह कर भव्य भवनों में रहते हें | रामकृष्ण ने नरेंद्र में संभावनाएं पहचानीं और उन्होंने उनको अपना शिष्य बना लिया। आज संसार में स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित आश्रम निराशा-हताशा में सेवा के प्रकाशघर हैं। क्रोध के विपरीत गुरु क्षमा का गहरा सागर होता है। मैथिलीशरण गुप्त ने प्राचीन आश्रमों और गुरु की प्रशंसा भारत भारती में की। आमोद धौम्य: आरुणि, संदीपन गुरु आश्रम, याज्ञवल्कय आश्रम, अगस्त ऋषि आश्रम आदि में ज्ञान, विज्ञान, कृषि, गोपालन और अध्यात्म, शिक्षण-विषय थे। बाद में नवद्वीप, तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित हुए जिनमें सुदूर देशों के विद्यार्थी यात्रा करके आते थे। हमारे यहां के गुरु विश्व पूज्य थे।जो कलयुग में बदनाम हो रहे हें | जहां लोग विदेश पढ़ने जाते थे वहीं डॉ. राधाकृष्णन पढ़ने नहीं पढ़ाने गए। आज भी परशुराम-कर्ण, द्रोणाचार्य-एकलव्य, रामानंद-कबीर जैसे गुरु-शिष्य बहुत हैं। गणेशप्रसाद वर्णी ने काशी में विद्यालय स्थापित करके अपनी पढ़ाई शुरू की और फिर गुरुओं की नियुक्ति उन्होंने की, उनके आदेश माने। डॉ. राधाकृष्णन जब मैसूर से कोलकाता गए तो उनके शिष्यों ने रथ में जुतकर उनको आसीन किया और बिदाई दी। शिष्य की जागरूकता गुरु की आदरपात्रता का सम्मान करती है। लालबहादुर शास्त्री ने अपने गुरु निष्कामेश्वर मिश्र के निधन पर गजरौला से काशी की यात्रा नंगे पैर उसी कोच में की। रेल के किसी अधिकारी से कहकर वह कोच नि:शुल्क ले सकते थे, ऐसा उन्होंने नहीं किया और पूरा व्यय वहन किया। गुरु ऋण चुकाने में शास्त्री जी ने पूरी ईमानदारी और तत्परता बरती थी।

बुधवार, 21 जुलाई 2010

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

वर्तमान युग में आश्रम व्यवस्था खतम हो चुकी है। आश्रमों के खतम होने से संघ भी नहीं रहे। संघ के खतम होने से राज्य भी मनमाने हो चले हैं। वर्तमान में जो आश्रम या संघ हैं वे क्या है हम नहीं जानते।


आश्रम चार हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। आश्रम ही हिंदू समाज की जीवन व्यवस्था है। आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्ति की उम्र 100 वर्ष मानकर उसे चार भागों में बाँटा गया है।उम्र के प्रथम 25 वर्ष में शरीर, मन और ‍बुद्धि के विकास को निर्धारित किया गया है। दूसरा गृहस्थ आश्रम है जो 25 से 50 वर्ष की आयु के लिए निर्धारित है जिसमें शिक्षा के बाद विवाह कर पति-पत्नी धार्मिक जीवन व्यतीत करते हुए परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं। उक्त उम्र में व्यवसाय या कार्य को करते हुए अर्थ और काम का सुख भोगते हैं।50 से 75 तक की आयु से गृहस्थ भार से मुक्त होकर जनसेवा, धर्मसेवा, विद्यादान और ध्यान का विधान है। इसे वानप्रस्थ कहा गया है। फिर धीरे-धीरे इससे भी मुक्त होकर व्यक्ति संन्यास आश्रम में प्रवेश कर संन्यासियों के ही साथ रहता है।
                                                                                                                 आश्रमों की अपनी व्यवस्था होती है। इसके नियम होते हैं। आश्रम शिक्षा, धर्म और ध्यान व तपस्या के केंद्र हैं। राज्य और समाज आश्रमों के अधीन होता है। सभी को आश्रमों के अधीन माना जाता है। मंदिर में पुरोहित और आश्रमों में आचार्यगण होते हैं। आचार्य की अपनी जिम्मेदारी होती है कि वे किस तरह समाज में धर्म कायम रखें। राज्य के निरंकुश होने पर अंकुश लगाएँ। किस तरह विद्यार्थियों को शिक्षा दें, किस तरह वे आश्रम के संन्यासियों को वेदाध्ययन कराएँ और मुक्ति की शिक्षा दें। संन्यासी ही धर्म की रीढ़ हैं और ब्रह्मिण का गुरु होता हें |