शनिवार, 7 अगस्त 2010

शिवलिंग पूजा का महत्व

शिवलिंग पूजा का महत्व

श्री शिवमहापुराण के सृष्टिखंड अध्याय १२श्लोक ८२से८६ में ब्रह्मा जी के पुत्र सनत्कुमार जी वेदव्यास जी को उपदेश देते हुए कहते है कि हर गृहस्थ को देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर पंचदेवों (श्री गणेश,सूर्य,विष्णु,दुर्गा,शंकर) की प्रतिमाओं में नित्य पूजन करना चाहिए क्योंकि शिव ही सबके मूल है, मूल (शिव)को सींचने से सभी देवता तृत्प हो जाते है परन्तु सभी देवताओं को तृप्त करने पर भी प्रभू शिव की तृप्ति नहीं होती। यह रहस्य देहधारी सद्गुरू से दीक्षित व्यक्ति ही जानते है।
सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु ने एक बार ,सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के साथ निर्गुण-निराकार- अजन्मा ब्रह्म(शिव)से प्रार्थना की, "प्रभों! आप कैसे प्रसन्न होते है।"

प्रभु शिव बोले,"मुझे प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का पूजन करो। जब जब किसी प्रकार का संकट या दु:ख हो तो शिवलिंग का पूजन करने से समस्त दु:खों का नाश हो जाता है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )
(२) जब देवर्षि नारद ने श्री विष्णु को शाप दिया और बाद में पश्चाताप किया तब श्री विष्णु ने नारदजी को पश्चाताप के लिए शिवलिंग का पूजन, शिवभक्तों का सत्कार, नित्य शिवशत नाम का जाप आदि क्रियाएं बतलाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय श्लोक से पृष्ठ )ना+रद =जिसकी कोई बात रद ना होती हो |
(३) एक बार सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी देवताओं को लेकर क्षीर सागर में श्री विष्णु के पास परम तत्व जानने के लिए पहुॅचे । श्री विष्णु ने सभी को शिवलिंग की पूजा करने की आज्ञा दी और विश्वकर्मा को बुलाकर देवताओं के अनुसार अलग-अलग द्रव्य के शिवलिंग बनाकर देने की आज्ञा दी और पूजा विधि भी समझाई।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय १२ )
(४) रूद्रावतार हनुमान जी ने राजाओं से कहा कि श्री शिवजी की पूजा से बढ़कर और कोई तत्व नहीं है। हनुमान जी ने एक श्रीकर नामक गोप बालक को शिव-पूजा की दीक्षा दी। (प्रमाण श्री शिवमहापुराण कोटीरूद्र संहिता अध्याय १७ ) अत: हनुमान जी के भक्तों को भी भगवान शिव की प्रथम पूजा करनी चाहिए।
(५) ब्रह्मा जी अपने पुत्र देवर्षि नारद को शिवलिंग की पूजा की महिमा का उपदेश देते है। देवर्षि नारद के प्रश्न और ब्रह्मा जी के उत्तर पर ही श्री शिव महापुराण की रचना हुई है। पार्वती जगदम्बा के अत्यन्त आग्रह से, जनकल्याण के लिए, निर्गुण निराकार अजन्मा ब्रह्म (शिव) ने सौ करोड़ श्लोकों में श्री शिवमहापुराण की रचना की। चारों वेद और अन्य सभी पुराण, श्री शिवमहापुराण की तुलना में नहीं आ सकते। प्रभू शिव की आज्ञा से विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने श्री शिवमहापुराण को २४६७२ श्लोकों में संक्षिप्त किया है। ग्रन्थ विक्रेताओं के पास कई प्रकार के शिवपुराण उपलब्ध है परन्तु वे मान्य नहीं है केवल २४६७२ श्लोकों वाला श्री शिवमहापुराण ही मान्य है। यह ग्रन्थ मूलत: देववाणी संस्कृत में है और कुछ प्राचीन मुद्रणालयों ने इसे हिन्दी, गुजराती भाषा में अनुदित किया है। श्लोक संख्या देखकर और हर वाक्य के पश्चात् श्लोक क्रमांक जॉंचकर ही इसे क्रय करें। जो व्यक्ति देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर , एक बार गुरूमुख से श्री शिवमहापुराण श्रवण कर फिर नित्य संकल्प करके (संकल्प में अपना गोत्र,नाम, समस्याएं और कामनायें बोलकर)नित्य श्वेत ऊनी आसन पर उत्तर की ओर मुखकर के श्री शिवमहापुराण का पूजन करके दण्डवत प्रणाम करता है और मर्यादा-पूर्वक पाठ करता है, उसे इस प्रकार सम्पूर्ण २४६७२ श्लोकों वाले श्री शिवमहापुराण का बोलते हुए सात बार पाढ करने से भगवान शंकर का दर्शन हो जाता है। पाठ करते समय स्थिर आसन हो, एकाग्र मन हो, प्रसन्न मुद्रा हो, अध्याय पढते समय किसी से वार्ता नहीं करें, किसी को प्रणाम नहीं करे और अध्याय का पूरा पाठ किए बिना बीच में उठे नहीं। श्री शिवमहापुराण पढते समय जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे व्यवहार में लावें।श्री शिव महापुराण एक गोपनीय ग्रन्थ है। जिसका पठन (परीक्षा लेकर) सात्विक, निष्कपटी, प्रभू शिव में श्रद्धा रखने वालों को ही सुनाना चाहिए।
(६) जब पाण्ड़व लोग वनवास में थे , तब भी कपटी, दुर्योधन , पाण्ड़वों को कष्ट देता था।(दुर्वासा ऋषि को भेजकर तथा मूक नामक राक्षस को भेजकर) तब पाण्ड़वों ने श्री कृष्ण से दुर्योधन के दुर्व्यवहार के लिए कहा और उससे राहत पाने का उपाय पूछा। तब श्री कृष्ण ने उन सभी को प्रभू शिव की पूजा के लिए सलाह दी और कहा "मैंने सभी मनोरथों को प्राप्त करने के लिए प्रभू शिव की पूजा की है और आज भी कर रहा हॅूॅ।तुम लोग भी करो।" वेदव्यासजी ने भी पाण्ड़वों को भगवान् शिव की पूजा का उपदेश दिया। हिमालय में, काशी में,उज्जैन में, नर्मदा-तट पर या विश्व में कहीं भी चले जायें, प्रत्येक स्थान पर सबसे सनातन शिवलिंग की पूजा ही है। मक्का मदीना में एवं रोम के कैथोलिक चर्च में भी शिवलिंग स्थापित है परन्तु सही देहधारी सद्गुरू से दीक्षा न लेकर ,सही पूजा न करने से ही हमें सांसारिक सभी सुख प्राप्त नहीं हो रहे है।
श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११ श्लोक १२से १५ में श्री शिव-पूजा से प्राप्त होने वाले सुखों का वर्णन निम्न प्रकार से है:- दरिद्रता, रोग सम्बन्धी कष्ट, शत्रु द्वारा होने वाली पीड़ा एवं चारों प्रकार का पाप तभी तक कष्ट देता है, जब तक प्रभू शिव की पूजा नहीं की जाती। महादेव का पूजन कर लेने पर सभी प्रकार का दु:ख नष्ट हो जाता है, सभी प्रकार के सुख प्राप्त हो जाते है और अन्त में मुक्ति लाभ होता है। जो मनुष्य जीवन पाकर उसके मुख्य सुख संतान को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें सब सुखों को देने वाले महादेव की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र विद्यिवत शिवजी का पूजन करें। इससे सभी मनोकामनाएं सिद्द्ध हो जाती है।(प्रमाण श्री शिवमहापुराण सृष्टिखंड अध्याय ११श्लोक१२ से १५)
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महिलाओं के लिये शिव पूजा

 

महिलाओं के लिये शिव पूजा

स्त्री को सबसे बड़ा सुख है - रूपवान, धनवान,बुद्धिमान और अनुकूल पति। सती जगदम्बा को सर्व गुण सम्पन्न और सृष्टि का मालिक भगवान शंकर ही पति रूप में मिल गए। प्रभु शिव ने भी लोग व्यवहार के अनुसार (आत्म चिन्तन छोड़कर) सती के साथ विहार करके उसे पूर्ण रूप से तृत्प किया। पूर्ण तृत्प होने पर सती जगदम्बा ने प्रभु शिव से प्रार्थना की ," हे नाथ ! आपने बहुत समय तक मेरे साथ विहार किया, उससे मैं प्रसन्न हॅू और मैरा मन उस ओर से निवृत्त हो गया है। अब मैं हे देवेश! हे हर!उस परम तत्व को आपसे जानना चाहती हॅू जिससे प्राणी शीघ्र ही संसार के दु:खों से पार हो जाये, जिसे करके विषयी जीव परम-पद को पाकर पुन: संसार में जन्म न ले सके। कृपा करके उस तत्व का आप वर्णन कीजिए।( प्रमाण श्री शिव महापुराण सतीखंड अध्याय २३श्लोक ४-९ पृष्ठ संख्या १९१)तब प्रभु शिव ने अपना गुप्त ज्ञान (शिव की नवधा भक्ति) सती जगदम्बा को दिया।...... भुक्ति-मुक्ति रूप फल को देने वाली मेरी भक्ति ब्रह्म-ज्ञान की माता है....भक्ति और ज्ञान में कोई भेद नहीं है..... मेरी भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य उत्पन्न करती है, मुक्ति भी इसकी दासी बनी रहती है।( प्रमाण श्री शिव महापुराण अध्याय श्लोक १२-४६ पृष्ठ संख्या १९२-१९३)

पार्वती जगदम्बा ने जन कल्याण के लिए प्रभु शिव से पूछा,"अजितेन्द्रिय तथा मन्दबुद्धि वालों के वश में आप कैसे हो सकते है ? "प्रभु शिव ने जो रहस्यमय उपदेश पार्वती को दिया, वह २४६७२ श्लोक वाले श्री शिव महापुराण के वायवीय संहिता उत्तर भाग के अध्याय १०-११ पृष्ठ ८९५-८९९ में देख सकते है।

इसमें प्रभु शिव ने कृपा करके ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शुद्रों के भी कर्तव्य दिये हैं। विधवा स्त्री का धर्म बताया है। प्रभु शिव ने वेद-पुराण दूसरों को पढाना, यज्ञ कराना और दान लेने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को दिया है, क्षत्रियों, वैश्यों को नहीं दिया। (श्री शिव महापुराण वायवीय संहिता उत्तर भाग अध्याय ११श्लोक १२ पृष्ठ ८९८) इसका स्पष्ट अर्थ है कि जो व्यक्ति, प्रभु शिव की इस आज्ञा को न मानकर,विरूद्ध कर्म करता है वह निश्चित मरकर नरक में जाता है।
- पति-पत्नी के धर्म क्या है? विवाह संस्कार देखें
- पति में क्या गुण होने चाहिए, पति को पत्नी की कैसे रक्षा करनी चाहिए?
- धर्म कर्म में कैसे सहायक होना चाहिए, इसका सम्पूर्ण ज्ञान वेद और पुराणों में दिया गया है।
- पतिव्रता पत्नी में क्या लक्षण होने चाहिए?
- पतिव्रता पत्नी कैसे अपने उद्धार के साथ पति और माता-पिता की तीन-तीन पीढ़ियों को तार सकती है? उसका वर्णन पार्वती खंड के अध्याय ५४ में वर्णित है।

प्रभु शिव की आज्ञा है कि "स्त्रियों के लिए पति सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। यदि पति की आज्ञा हो तो वह मेरा (शिव) मूर्ति का पूजन करें।" जो स्त्री, पति की सेवा को छोड़कर व्रत करने लगती है, वह नि:सन्देह नरक को जाती है।(श्री शिव महापुराण वायवीय संहिता उत्तर भाग अध्याय ११ श्लोक १९-२० पृष्ठ ८९८)भारत में जन्मी स्त्रियों को इस ज्ञान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्रभु शिव के इस आदेश के अनुसार महिलाओं को प्रभु शिव की मूर्ति पूजा  के अतिरिक्त और कोई अधिकार नहीं है।
भारत की नारियों को, प्रभु शिव की पूजा का अधिकार कब प्राप्त हो सकता है, उसके लिए आश्रम से सम्पर्क करें।अधिकांश महिलाएं पूजा में किस भंयकर गलती के कारण विधवा होकर मरती है(सुहागिन होकर नहीं मरती) इस आश्रम से मार्गदर्शन लें।
जब ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति (जिनकी ६० कन्याओं से इन्द्रादि लोकपाल उत्पन्न हुए) एक महान यज्ञ सत्ययुग में किया उस यज्ञ में सभी को बुलाया केवल एक संहारक शंकर जी को ही नहीं बुलाया। तब दक्ष की पुत्री सती जगदम्बा स्वयं कनखल में हो रहे यज्ञ-स्थल में आई और अपने पिता से बोली,...."जो महादेव की निन्दा करता है तथा निन्दा के वचनों को सुनता है, वे दोनों ही तब तक नरक गामी होते है जब तक चन्द्र और सूर्य रहते है... शिव ये दो अक्षरों वाला नाम जिन मनुष्यों की जीभ ने एक बार भी लिया है वह उनके समस्त पापों का नाश कर देता है।( प्रमाण श्री शिव महापुराण सतीखण्ड अध्याय २९ पृष्ठ संख्या २०४ से २०६)
महिलाओं को श्री शिव की पूजा बहुत शीघ्र फलवती हो जाती है। महानन्दा, चंचुला, पिंगला, शारदा, ऋषिका, आहुका आदि अनेक महिलाओं ने शिव भक्ति के प्रभाव से सद्गति प्राप्त की। कन्या में आत्मबल की वृद्धि,प्रभु शिव की (शिवलिंग में)पूजा के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। ५ से ८ वर्ष की कन्या यदि सही सद्गुरू से दीक्षा लेकर शिव-पूजा करती है तो उससे आत्मबल भी बढ़ता है, इसी जन्म में राजपद् भी प्राप्त होता है और वह निश्चित रूप से कुल तारक संतान को ही उत्पन्न करेगी। शेष जीवन को सुधारने के लिए महिला आश्रम से नि:शुल्क सेवा प्राप्त कर सकती है।(यदि महिला कोई धन नहीं कमाती हो) स्कन्दपुराण में यादव कुल की राजकुमारी कलावती की कथा इसी जन्म में मुक्त होने के लिए, अगले जन्म में राजकुल प्राप्त करने के लिए या अगले जन्म में पुरूष रूप में जन्म लेने के लिए, आश्रम से अलग - अलग क्रियाएं सिखायी जाती है।
महिलाओं को जबभी कभी कोई कष्ट होता है तो वे देहधारी शिवभक्त सद्गुरू से दीक्षा लेकर, भगवान शंकर की शिवलिंग में पूजा (संकल्प करके ) करके शिवलिंग के सामने ही महानन्दा की कथा का पाठ बोलकर करती है। महानन्दा एक वैश्या थी और महान् शिवभक्ता थी। बिना तपस्या के ही महानन्दा को निष्कपट-भाव से श्रद्धा-भक्ति से शिवलिंग का पूजन,प्रभु शिव के व्रत करने तथा शिवभक्त ब्राह्मणों को दान देने से घर बैठे प्रभु शिव ने दर्शन दिये और महानन्दा के मॉंगने पर प्रभुशिव ने उसको उसके समाज सहित सभी को शिव-लोक प्रदान कर अतुल सुख दिया। यह कथा स्कन्द पुराण में महानन्दा के नाम से और श्री शिवमहापुराण के शतरूद्र संहिता के अध्याय २६ प्रभु शिव के वैश्यनाथ अवतार के नाम से वर्णित है। महिलाये विधि को आश्रम से सीख सकती है। अतिथी सत्कार की महिमा सभी धर्म शास्त्रों में वर्णित है। स्कन्द पुराण में वेश्या पिंगला का चरित्र और श्री शिवमहापुराण में आहुका का चरित्र (शतरूद्र संहिता अध्याय २८ में) अतिथी सत्कार में यदि किसी महिला ने एक बार भी शिवभक्त का सत्कार कर दिया, तो निश्चित रूप से भगवान शंकर स्वयं अगले जन्म में सद्गुरू रूप से उसे दीक्षा देकर उसकी सद्गति करते है। अतिथी सत्कार की विधि आश्रम से नि:शुल्क सिखायी जाती है।
आजकल कुछ कपटी लोगों ने एक भ्रामक प्रचार फैला रखा है कि स्त्रियों को शिवलिंग के स्पर्श एवं पूजन का अधिकार नहीं है। रूद्राक्ष और भ्रस्म त्रिपुण्ड़ लगाने का अधिकार नहीं है। विष्णु भक्तों को रूद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए, भस्म त्रिपुण्ड़ नहीं लगाना चाहिए, शिवलिंग का पूजन नहीं करना चाहिए, शिवजी का प्रसाद नहीं खाना चाहिए इत्यादि। वसिष्ठ की पत्नी अरून्धती जिसके दर्शन आज भी आकाशमण्डल के सप्तर्षि मण्ड़ल में होते हैं। यह अरून्धती पूर्व जन्म में ब्रह्मा की पुत्री सन्ध्या थी। सन्ध्या नेे गुरू वसिष्ठ से ऊॅं नम: शंकराय ऊॅं मंत्र की दीक्षा लेकर चार युगों तक हिमालय की चन्द्रभागा नदी के तट पर प्रभु शिव के लिए तपस्या की। ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया ने, अपने पति अत्रि के साथ प्रभु शिव की पूजा करके ब्रह्मा-विष्णु-महेश के अंश से एक-एक पुत्र दुर्वासा, दत्तात्रेय और चन्द्रमा उत्पन्न किये। चंचुला ब्राह्मणी भ्रष्ट हो गई थी। उसने देहधारी गुरू से दीक्षा लेकर शिवोपासना से सद्गति प्राप्त की। सूर्यवंशी राजा दशरथ की पत्नियॉं कौशल्या - सुमित्रा - कैकई ने शिव-पूजन से ही श्री विष्णु के अंश से चार पुत्र राम-लक्ष्मण- भरत-शत्रुघ्न प्राप्त किए। भारद्वाज गोत्र में उत्पन्न सुधर्मा ब्राह्मण की पुत्री घुष्मा ने शिवलिंग का पूजनकर बिना तपस्या के ही प्रभु शिव का साक्षात्कार कर लिया और उसके नाम से द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग(एलोरा गुफा के समीप) विराजमान है।
हिमालय जो कि विष्णु का अंश है, उसके १०० पुत्र थे परन्तु वे सब से अधिक स्नेह अपनी पुत्री पार्वती से करते थे। राजा अनरण्य जिसने सफलतापूर्वक १०० यज्ञ किए थे। देवता उसे इन्द्रपद प्रदान कर रहे थे परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया। उसके भी सौ पुत्र थे। राजा अनरण्य सौ पुत्रों से भी अधिक स्नेह अपनी पुत्री पद्मा से करते थे। कन्या संतान भी कुलतारक होती है।


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