शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

वैष्णव का अर्थ

वैष्णव का अर्थ 

भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय।
ज्यादातर लोग धर्म के नाम पर संकीर्णता को बढावा देते है । अपना मनपसंद संप्रदाय ( राधास्वामी  ,निरंकारी ,,ओशो आर्य समाज मिशन या धर्म गुरुओं की जमात कोही ही सच्चा, सर्वश्रेष्ठ मानलेते हेँ  और दूसरे सब धर्म या संप्रदाय निरर्थक व निकम्मे है ऐसी विचारधारा वाले लोगों की संख्या कम नहीं है । एक तरह से देखा जाय तो ऐसे लोग नाना मनुष्यों के बीच भेदभाव की कृत्रिम दिवार खडी कर देते हैं और धर्म या संप्रदाय के नाम पर , बहस, असहिष्णुता, वैर-द्वेष, विरोध व घर्षण पैदा कर देते है । ऐसे लोग अपने आपको तो हानि पहुँचाते ही है पर साथ ही जिस समाज में वे रहते है उसको भी हानि पहुँचाते है । वे तो बदनाम होते ही हैं, साथ में उनका धर्म भी बदनाम होता है । वे यह भूल जाते हैं कि सच्चा धर्म इन्सान को सच्चे अर्थ में  सनातन पुरातन धर्म में ही शिहू रूप में इन्सान बनाता है । वही बाप दादाओं और पूर्वजों का धर्म हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई  उसे समभावी व विशाल हृदय संपन्न मानव बनाता है । वह उसमें विवेक की ऐसी ज्योत जगाता है जिसके आलोक में वह सब प्रकार की कटुता व पूर्वग्रहों को खत्म कर देता है ।
ऐसे ज्ञानी पुरुष कभी मिल जाते है पर वे विरले होते है । जब उनसे मिलाप होता है तो हमारे अंतर में अकथ्य आनंद का अनुभव होता है और ऐसा प्रतीत हुए बिना नहीं रहता कि आज भी संसार में सच्चे मानव साँस ले रहे है । जगत में जो थोडी शांति या सुखानुभूति दृष्टिगत होती है वह ऐसे सज्जन सत्वगुण-संपन्न मनुष्यों पर आधारित है । हमारी पृथ्वी पर के ऐसे मानव-देवता को देख मन-मयूर नाच उठता है 

                                                                                                            

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