गुरुवार, 24 जून 2010

कुरुक्षेत्र युद्ध के योद्धा

बुधवार, 16 जून 2010

जीवन का महाभारत हमें लड़ऩा भी है और जीतना भी है

yuddha_310एक महाभारत वो था जो कुरुक्षेत्र की भूमि पर लड़ा गया था। जिसमें एक और अन्याय और अधर्म थे तो दूसरी तरफ न्याय और धर्म। जिधर धर्म था, उधर भगवान थे और जिस ओर स्वयं भगवान हों वहां जीत तो सुनिश्चित ही थी। ऐसा ही एक महाभारत दुनिया के हरेक इंसान को लडऩा होता है। जबसे इंसान को यह शरीर मिला है, जबसे वह पैदा हुआ है, तभी से संघर्ष .... संघर्ष.... संघर्ष ।

ऐसा ही हम सभी के जीवन का कुरुक्षेत्र भी है। जैसे ही बच्चा पैदा होता है पहले रोता है। तो रोने से शुरू होती है उसके संघर्षों की कहानी। आज ये करूंगा, कल वो करूंगा। मतलब कर्म के बगैर आदमी रह नहीं सकता। जब तक शरीर है एक क्षण भी हम बिना कर्म के रह नहीं सकते। मन भी कहता रहता है ये करूंगा वो करूंगा। तो जब तक जीवन है तब तक कर्म करना ही होता है,लेकिन मूल बात है कुशलता पूर्वक कर्म करना। बिना कर्म के तो रहना मुश्किल है और कर्म से छूटना मुश्किल है। लेकिन कर्म के बंधन से छूटना मुश्किल नहीं है, यह युक्ति गीता के तीसरे अध्याय 'कर्मयोग' में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं।

महाभारत के विश्वविख्यात युद्ध के लिये स्वयं श्री कृष्ण द्वारा जगह का चयन किया गया। कुरुक्षेत्र के विशाल मेदान में दोनों ओर सेनाएं हैं, रथ हैं, रथ में अर्जुन बैठे हैं और कृष्ण सारथी के रूप में रथ के अश्वों की बागडोर अपने हाथ में लिए चला रहे हैं। थोड़ा समझें, यह केवल ऐतिहासिक घटना मात्र नहीं है, इसमें एक दर्शन है। जीवन स्वयं में कुरुक्षेत्र है। हमारे जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब हम किंकर्तव्यविमूढ़ होकर खड़े हो जाते हैं, अर्जुन की तरह। क्या करना चाहिए, क्या नहीं, हमारी समझ में नहीं आता। अपना कर्तव्य क्या है? अपना धर्म क्या है? गीता के द्वारा भगवान हमें याद दिलाते हैं कि-हमारा कर्तव्य क्या है? लक्ष्य क्या है? और इस लक्ष्य को सफलतापूर्वक हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं।

मंगलवार, 15 जून 2010

gita और Deepak Parmanand के बीच

Guru giyan bina jeevan कोरा     

जिस  के  जीवन  मैं  गुरु  नहीं , वोह  इंसान  नहीं  पशु  है , कृष्ण  और  राम  को  भी  गुरु  की  सनिथ्य  मैं  जाना  पड़ा , जो  स्वयं  अनपद  हो , वोह  दूसरो  की  गुरु  भक्ति  को  किया  समजे  गहा , वोह  कितनी  भी  गीता  पड  ले , उसका  मार्ग  दर्शन  गुरु  के  बिना  नहीं  हो  सख्त . संत  महा  पुरुषो  की  निंदा  कर्न्ने  वाले  सनातन  धर्म  पे  एक  थफा है . प्रभु  सब  को  सुध  बूढी  प्रधान  करे . किसी  गुरु  के  बारे  मैं  अच  नहीं  सूच  सकते  तो  उनके  भरे  मैं  मत  लिकिये . आप  का  गुरु  बिना  गियान  आप  को बी  मुभारक  हो .दीपक परमा नन्द जी कास्न्देश गीता शर्मा के नाम
                                                       गीता द्वारा जीहाँ जिसके जीवन में गुरु नही उसका जीवन कोरा होता है और गुरु अछी तरहा  परख कर ही बना ना चाहिए राम और कृष्ण के गुरु तो थे जब तक उन्होंने सनातन धर्म की स्थापना का काम आरम्भ नही किया हमारे शाश्त्र भी ब्राह्मण को ही गुरु बताते हैं ,भू देव बताते हैं ,कलयुग के पड़े लिखे गुरु और उनके आप जेसे चेले ,देह धारी को गुरु बनाते हैं जो अभी तक मुक्त नही आगे ऐसा होने वाला भी शक ही है ,क्यों की गीता के आरम्भ में दो सेनाओं के बीच भगवान अर्जुन का रथ हांक रहे हैं ,दूसरी सेना में सभी गुरुओं को शामिल करवा अर्जुन के हाथो ही मरवा रहे हैं ,कुछ भी छिपा नही हर अन्पड इतना जानता है ,पड़े लिखों का लेबल लगे यह इसलिए नही जानते क्यों की उन की दूकान दारी प्रभावित होती है , वेसे भी दो बेड़ियों का स्वर डूबता ही है , सिख धर्म नानक (अकाल पुरख )के जहाज पर सवार होने को कहते  है और ग्रन्थ को गुरु मानने की आज्ञा देता है ,मुस्लिम ,इसाई और हिन्दू सनातन धर्म  भी भगवान की ही शरण ग्रहण करने को कहते हैं ,किसी और की नही ,कलयुगी गुरु की शरण आप जेसे पड़े लिखे मुर्ख ही कहा करते हैं ,यह भी सत्य है की एक अक्ल का अंधा -अन्य अक्ल्के अंधों को कलयुग में गुरु बन मार्ग दर्शन करवा रहा है इनकी बहुत बड़ी  जमात है ,और उनकी आस्था अविनाशी गुरु में नही ऐसे गुरु में है जिस का नाश निश्चित हें , मेरे गुरु अविनाशी हैं जिन का किसी भी काल में नाश नही हूआ वह हैं गुरु ब्रह्मा गुरु महेश गुरु विष्णू ,इन जेसा या इनके समान कलयुगी गुरू होही नही सकता , इसी लिए मेने इसी अविनाशी गुरु को अपना गुरु धारण किया है में आप की दृष्टि में अविनाशी गुरु की शिष्या होने के कारण पशु समान हूँ मुझ बहुत अछा लगा ,अब आप विचार करें सनातन धर्म के नाम पर धबा कोन?

सोमवार, 14 जून 2010

klyugi raam

Naresh Motwani

Naresh Motwani सत्शिष्य वही
है जो गुरु के
आदेश के
मुताबिक चले।
गुरुमुख बनो,
...मनमुख नहीं।
गुरुदेव के
वचनों पर चलो।
सब ठीक हो
जायेगा। बड़े
दिखने वाले
आपत्तियों के
घनघोर बादल
गुरुमुख
शिष्य को डरा
नहीं सकते।
उसके देखते
देखते ही वे
बादल
छिन्न-भिन्न हो
जाते हैं।
गुरुमुख
शिष्य कभी
ठोकर नहीं खाता।
जिसको अपने
गुरुदेव की
महिमा पर
पूर्ण भरोसा
होता है ऐसा
शिष्य इस
दुर्गम माया
से अवश्य पार
हो जाता है।

Gita Sharma
इन सभी कलयुगी गुरुओं को में वार्ता के लिए आमंत्रित करती हूँ ,मेरा संदेश पहुंचा दें और धन्यवाद के पात्र बने 
Gita Sharma
Dayena Patel जी गुरु बाओ जान कर पानी पियो छान कर ,अविनाशी गुरु की सेवा करें उसे ही गुरु रूप में मनमे धरें 
@Jay Palnitkar ji कोई छोटा नही कोई बड़ा नही आत्मा तो है वही की वही फिर कोन छोटा कोन बड़ा में डंके की चोट पर क्ह रही हूँ आसाराम भगवान नही ही है 
मानव जन्म का उदेश है की ,बुधि के अंश को ग्रहण किया जावे ,बार बार चिन्तन किया जावे ,परन्तु काम क्रोध लोभ से जितनी दूरी सम्भव हो बनाने का प्रयास
करें ,अन्यथा यह सर पर सवार हो कर हमारी बुधि के मूल्यों को नष्ट कर देते हैं.गुर मुख किसी के चेहरे पर नजर नही आता ,मनमुख चेहरे से ही नजर आने लगता है ,मनुष्य का गुरु अविनाशी जिस का नाश ही ना हो अति उतम ,नाश वा.... और देखें... और देखें.. और देखेंन गुरु जिसे मर जाना है अधम होता है क्यों की इनके शिष्यों को गुरुदेव की
महिमा परपूर्ण भरोसा होता है, ईस्वर पर नही ,अतः यही गुर मुख गुरु सहित नरक का भोगी हो जाता हे सदेव नीच से नीच योनी को प्राप्त होता है ऐसा हमारे शाश्त्र कहते हैं

मेरा मत तो यह है की इंसान को गुरु ही ना बनाया जावे क्या आप का गुरु पापी नही उसने कोई पाप नही किया ?चोर का चेला महान चोर नही तो क्या बने गाआप गीता का अध्ययन आरम्भ करें रामजी आप का भला करें