मंगलवार, 31 अगस्त 2010

कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी
कृष्ण जन्माष्टमी का महात्मय: भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अतः इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी अथवा जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था| इस तिथि को रोहिणी नक्षत्र का विशेष माहात्म्य है| इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रुंगार किया जाता है| कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाँकियाँ सजायी जाती है|  भगवान कृष्ण का श्रुंगार करके झूला सजाया जाता है| स्त्री-पुरुष रात के बारह बजे तक व्रत रखते है| रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्री कृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है| प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है|
कृष्ण जन्माष्टमी की विधिः इस दिन उपवास रखें तथा अन्न का सेवन न करें। अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है। धार्मिक गृहस्थों के घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। भगवान के श्रीविग्रहका श्रृंगार करके उसे झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम को दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है।

कृष्ण जन्माष्टमी की कथाः द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसों के अत्याचार बढने लगे। पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी व्यथा सुनाने के लिए तथा अपने उद्वार के लिए ब्रह्याजी के पास गई। ब्रह्याजी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गये। उस समय भगवान विष्णु अनन्त शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्या एवं सब देवताओ को देखकर उनके आने का करण पूछा तो पृथ्वी बोली-''भगवान! मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ मेरा उद्वार कीजिए। '' यह सुनकर विष्णु बोले-''मैं ब्रज मण्डल में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूगाँ। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण् करो।'' इतना कहकर भगवान अन्तर्धान हो गए।
इसके पश्चात देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द-यशोदा तथा गोप गोपियों के रूप में पैदा हुए।
द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थें। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वसुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि ''हे कंस! जिस देवकी को तू बडे प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवां पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा-न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा। वसुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे देवकी से तो कोई भय नही है। देवकी की आठवीं सन्तान से तुम्हें भय है। इसलिए मैं इसकी आठवीं सन्तान को तुम्हें सौप दूँगा। तुम्हारी समझ में जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना। कंस ने वसुदेवजी की बात स्वीकार कर ली और वसुदेव और देवकी को कारागार में बन्द कर दिया।
तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगी। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालकों को निर्दयातपूर्वक मार डाला।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वसुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पह्यधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहाँ- ''अब मैं बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो।''
तत्काल वासुदेव जी की हथकडियाँ खुल गई। दरवाजे अपने आप खुल गये। पहरेदार सो गये। वसुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए। रास्ते में यमुना श्री कृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढने लगीं। भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण छूने के बाद यमुना घट गई।
वसुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये। बालक कृष्ण को यशोदा जी की बगल में सुलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गये। जेल के दरवाजे पूर्ववत बन्द हो गये। वासुदेव जी के हाथों में हथकडियाँ पड़ गई, पहरेदार जाग गये। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार में आकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटककर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली-''हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुँच चुका है।'' यह द्रश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया।
कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्री कृष्ण ने अपनी अलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बडे होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।
श्री कृष्ण की पुण्य जन्म तिथि को तभी से सारे देश में बडे हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
 

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