सोमवार, 14 जून 2010

klyugi raam

Naresh Motwani

Naresh Motwani सत्शिष्य वही
है जो गुरु के
आदेश के
मुताबिक चले।
गुरुमुख बनो,
...मनमुख नहीं।
गुरुदेव के
वचनों पर चलो।
सब ठीक हो
जायेगा। बड़े
दिखने वाले
आपत्तियों के
घनघोर बादल
गुरुमुख
शिष्य को डरा
नहीं सकते।
उसके देखते
देखते ही वे
बादल
छिन्न-भिन्न हो
जाते हैं।
गुरुमुख
शिष्य कभी
ठोकर नहीं खाता।
जिसको अपने
गुरुदेव की
महिमा पर
पूर्ण भरोसा
होता है ऐसा
शिष्य इस
दुर्गम माया
से अवश्य पार
हो जाता है।

Gita Sharma
इन सभी कलयुगी गुरुओं को में वार्ता के लिए आमंत्रित करती हूँ ,मेरा संदेश पहुंचा दें और धन्यवाद के पात्र बने 
Gita Sharma
Dayena Patel जी गुरु बाओ जान कर पानी पियो छान कर ,अविनाशी गुरु की सेवा करें उसे ही गुरु रूप में मनमे धरें 
@Jay Palnitkar ji कोई छोटा नही कोई बड़ा नही आत्मा तो है वही की वही फिर कोन छोटा कोन बड़ा में डंके की चोट पर क्ह रही हूँ आसाराम भगवान नही ही है 
मानव जन्म का उदेश है की ,बुधि के अंश को ग्रहण किया जावे ,बार बार चिन्तन किया जावे ,परन्तु काम क्रोध लोभ से जितनी दूरी सम्भव हो बनाने का प्रयास
करें ,अन्यथा यह सर पर सवार हो कर हमारी बुधि के मूल्यों को नष्ट कर देते हैं.गुर मुख किसी के चेहरे पर नजर नही आता ,मनमुख चेहरे से ही नजर आने लगता है ,मनुष्य का गुरु अविनाशी जिस का नाश ही ना हो अति उतम ,नाश वा.... और देखें... और देखें.. और देखेंन गुरु जिसे मर जाना है अधम होता है क्यों की इनके शिष्यों को गुरुदेव की
महिमा परपूर्ण भरोसा होता है, ईस्वर पर नही ,अतः यही गुर मुख गुरु सहित नरक का भोगी हो जाता हे सदेव नीच से नीच योनी को प्राप्त होता है ऐसा हमारे शाश्त्र कहते हैं

मेरा मत तो यह है की इंसान को गुरु ही ना बनाया जावे क्या आप का गुरु पापी नही उसने कोई पाप नही किया ?चोर का चेला महान चोर नही तो क्या बने गाआप गीता का अध्ययन आरम्भ करें रामजी आप का भला करें
 
 
 

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