मंगलवार, 6 जुलाई 2010

वर्तमान युग में आश्रम व्यवस्था खतम हो चुकी है। आश्रमों के खतम होने से संघ भी नहीं रहे। संघ के खतम होने से राज्य भी मनमाने हो चले हैं। वर्तमान में जो आश्रम या संघ हैं वे क्या है हम नहीं जानते।


आश्रम चार हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। आश्रम ही हिंदू समाज की जीवन व्यवस्था है। आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत व्यक्ति की उम्र 100 वर्ष मानकर उसे चार भागों में बाँटा गया है।उम्र के प्रथम 25 वर्ष में शरीर, मन और ‍बुद्धि के विकास को निर्धारित किया गया है। दूसरा गृहस्थ आश्रम है जो 25 से 50 वर्ष की आयु के लिए निर्धारित है जिसमें शिक्षा के बाद विवाह कर पति-पत्नी धार्मिक जीवन व्यतीत करते हुए परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं। उक्त उम्र में व्यवसाय या कार्य को करते हुए अर्थ और काम का सुख भोगते हैं।50 से 75 तक की आयु से गृहस्थ भार से मुक्त होकर जनसेवा, धर्मसेवा, विद्यादान और ध्यान का विधान है। इसे वानप्रस्थ कहा गया है। फिर धीरे-धीरे इससे भी मुक्त होकर व्यक्ति संन्यास आश्रम में प्रवेश कर संन्यासियों के ही साथ रहता है।
                                                                                                                 आश्रमों की अपनी व्यवस्था होती है। इसके नियम होते हैं। आश्रम शिक्षा, धर्म और ध्यान व तपस्या के केंद्र हैं। राज्य और समाज आश्रमों के अधीन होता है। सभी को आश्रमों के अधीन माना जाता है। मंदिर में पुरोहित और आश्रमों में आचार्यगण होते हैं। आचार्य की अपनी जिम्मेदारी होती है कि वे किस तरह समाज में धर्म कायम रखें। राज्य के निरंकुश होने पर अंकुश लगाएँ। किस तरह विद्यार्थियों को शिक्षा दें, किस तरह वे आश्रम के संन्यासियों को वेदाध्ययन कराएँ और मुक्ति की शिक्षा दें। संन्यासी ही धर्म की रीढ़ हैं और ब्रह्मिण का गुरु होता हें |

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