सनातन धर्म --की स्थापना भगवान विष्णु जी ,अवतार रूप धारण कर करते हैं |अध्याय २ के अनुसार
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥
भावार्थ : असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों को ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है॥16॥
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ईख
ई से ईख ई से ईश्वर
ईख [गन्ना ]से उत्पति क्यों की जिस तरहा ब्रह्मांडमांड की उत्पति ईश्वर से होती है उसी प्रकार ईख की उत्पति देखें
ईख से गुड --; हिन्दू सनातन धर्म एक ईश्वर के अतिरक्त और कुछ भी नही
जिस तरहा ईख से गुड शकर चीनी और बताशा उत्पन होते हैं उसी प्रकार ईश्वर से चार वेद ,चार दिशाएं , चार वर्ण , और चार सनातन धर्म , हिन्दू ; मुस्लिम ;सिख ; इसाई उत्पन होते जाने |गुड .चीनी .शकर. बताशा .; की उम्र लम्बी होती है ;इन को काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है ;परन्तु इन से उत्पन अन्य उत्पादों [ मिठाई और देह धारी गुरुओं; ]को लम्बे समय तक सुरक्षित नही रखा जा सकता |
गन्ना अपने आप में ही ईश्वर की भाँती अविनाशी है इस का कोई बीज नही |यह खुद ही अपना बीज होता है |
ईश्वर की भाँती उपर से कठोर भीतर से मुलायम और मीठा होता है |
मेरी नजर में सनातन धर्म ऐसा होता है जो एक ईश्वर के अतिरिक्त और किसी भी साधन को स्वीकार ना करता हो , गने के पते [ धागे ,ताबीज ,यंत्र -मन्त्र ,; तन्त्र और भी ढेरों ] जड़ वगेरा वगेरा |
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