Gita Sharma सनातन धर्म के कुछ नियम लुप्त हो चुके हें जिन पर चर्चा होनी चाहिए ,,,,,,,,किसी भी युग में संसारी जीव में आस्था उसका पूजन और भजन मोह माया का बंधन रहा है |जिस से यह जीव मुक्त नही होता |कलयुग में राम नाम से बड़ा कोई जप भावों की शुद्धता से बड़ा कोई तप ईश्वर में सदेव ध्यान से बड़ा कोई व्रत नही ,जिस से यह जीव मुक्ति का अधिकारी हो जाता हे |
Sanjiv Vaidya( १) हम एक भ्रम में जी रहे हैं ... और लोगो को सत्य चाहिए भी नह उन्हें तो बस सांत्वना चाहिए है ...सत्य को तो हम सूली पे लटका देते हैं ...साधो संतो ने ये जान लिया ...और कह दिया कलि काल हें घोर कलयुग हें ... जैसे पहले कभी एक ...हहा समय रहा हो ...लेकिन भ्रम पैदा किया की पहले राम राज्य था ... दूसरा भ्रम की आगे सतयुग आएगा ... पर ना कभी राम राज्य रहा ना कभी सतयुग आएगा ... तथाकथित साधू संत अपनी दुकान चलने क लिए ऐसा बोलते रहे ..भला क्या ये भक्ति हें की पत्थर पर फूल माला चदा दी और पूजने लगे ?
(2} खुद का बनाया भगवन ..खुद ही सर झुका दिया उसके सामने ... इसका नाम भक्ति हें ?? (३)इस से सरल और क्या हो सकता हें ??
(४) कह दिया जपो राम नाम .. मुक्ति मिलेगी ..लोग खुश बड़ा आसान काम हो गया ... जब से लोगो के चल रहे हैं होंठ ..ह्रदय को खबर ही नहीं है .....कोई कही नहीं पहुंचा ...
इतनी आसान नह इ है भक्ति इतना आसान नहीं है प्रेम परमात्मा से ...और इन झूठे आयोजनों से तो उपलब्ध नहीं होगा ..
आग से बिना गुज़रे नहीं होगा या ...तभी तपकर सोना बनेगा ..और प्रेम से बड़ी आग नहीं है ...ये आग ही है जो आत्मा को निखरेगी ..इसके लिए प्रेम में गिरना पर्याप्त नहीं है ....प्रेम में होना भी पर्याप्त नहीं है बल्कि स्वयं प्रेम होना होगा ..और इसको पाना है तो मस्तिष्क सइ सारी चेतना ह्रदय की तरफ प्रवाहित होनी चाहिए ...ये सबसे बड़ी क्रांति है ..हमे मस्तिष्क से नहीं ह्रदय से जीना होगा .
इतनी आसान नह इ है भक्ति इतना आसान नहीं है प्रेम परमात्मा से ...और इन झूठे आयोजनों से तो उपलब्ध नहीं होगा ..
आग से बिना गुज़रे नहीं होगा या ...तभी तपकर सोना बनेगा ..और प्रेम से बड़ी आग नहीं है ...ये आग ही है जो आत्मा को निखरेगी ..इसके लिए प्रेम में गिरना पर्याप्त नहीं है ....प्रेम में होना भी पर्याप्त नहीं है बल्कि स्वयं प्रेम होना होगा ..और इसको पाना है तो मस्तिष्क सइ सारी चेतना ह्रदय की तरफ प्रवाहित होनी चाहिए ...ये सबसे बड़ी क्रांति है ..हमे मस्तिष्क से नहीं ह्रदय से जीना होगा .
4 घंटे पहले · ·
- Bimal Surana जिव परमात्मा का अंस मने टी प्रकारी का क्या महत है .हम अपनी आत्मा को इस्वर यानि मूक आत्मा केसे बनाये .इस्वर से मिलन हो कर दुबारा जनम ना लेना परे .कर्मो का बंधन ख़तम हो जाये3 घंटे पहले · ·
- Ram Rawat बिलकुल सही कहा रे गीता तुमने ..2 घंटे पहले · ·
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